०२ ऑक्टोबर २०२०
सुख और दुख
अब बाईक लेकर भी इतना खुश नही हू
जितना साईकल लेकर हुआ था।
अब हजार रुपये गुम होनेपर इतना दुखी नही हु
जितना पहले पाच रुपये गुम होकर हुआ था।
अब बीस हजार का मोबाईल लेकर भी इतना खुश नही हू
जितना एक हजार का नोकिया लेकर हुआ था।
अब दस साल हो गये घरसे जुदा होकर इतना दुखी नही हू
जितना पहले एक दिन घर से जुदा होनेपर हुआ था।
अब पोस्ट ग्रॅज्युएट की डिग्री लेकर भी इतनी खुश नही हू
जितना दसवी मे सिर्फ पास होकर हुआ था।
ये सब सुख और दुख बदल गये
या वक्त के साथ हमे बदलने कि आदत हो गई है।
शायद बहुत कुछ बदल जाता है
बढती उम्र के साथ
पहले हम जिद्द किया करते थे
या अब हम समझोते किया करते है।
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