१० जून २०२०

डर लगता है...


शहर मे गया तो
गाव को तो ना भूल जाऊ
इस बात से डर लगता है...

नये दोस्त मिलने से
पुराने दोस्तोको तो ना भूल जाऊ
इस बात से डर लगता है...

अच्छे दिन आने से
बीते दिनो को तो ना भूल जाऊ
इस बात से डर लगता है...

कुछ अच्छे की चाहत मे
बेहतरीन को तो ना गमा दु
इस बात से डर लगता है...

अच्छा चेहरा मिलने से
पहले प्यार को तो ना भूल जाऊ
इस बात से डर लगता है...

कुछ रिश्तों को निभाते निभाते
कुछ अपनो को ना भूल जाऊ
इस बात से डर लगता है...

कुछ अपनो को खुश रखने में
अपने सपनो को ना भुल जाऊ
इस बात डर लगता है...

कुछ नया सिखने के चक्कर मे
अपने संस्कार को तो ना भूल जाऊ
इस बात से डर लगता है...

हक्क की मांग करते वक्त
अपने कर्तव्य को तो ना भुल जाऊ
इस बात से डर लगता है...

धर्म की बात करते समय
कही मैं भी इंसानियत को तो ना भुल जाऊ इस
बात से डर लगता है...

हा मैं डरता हू...
काश! दुनिया को समजने के उलझन मे
खुद को ही ना भूल जाऊ...
प्यार से भरी इस दुनिया मे
कही नफरतो का सागर (समुंदर) बन जाऊ...
खुद को संभालते संभालते
कही बिखरना तो ना भुल जाऊ..
और डरते डरते कही मै
लडना ही ना भुल जाऊ..

२ टिप्पण्या:

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